November 21, 2024

पुस्तक समीक्षा : पत्नी- एक रिश्ता : एक विवेचन

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* कृति : पत्नी एक रिश्ता,
* कृति_कार: श्री राधेश्याम माहेश्वरी,
*पृष्ठ संख्या: 161,
*मूल्य : 350 रुपए मात्र,
* प्रकाशन वर्ष: 2021 ई 0 सन।
* प्रकाशक : ओम पब्लिकेशन , सा केतनगर , इंदौर , मध्यप्रदेश,
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“पत्नी एक रिश्ता” सारस्वत साहित्यकार श्री राधेश्याम माहेश्वरी की ऐसी कृति है जिसमे अपनी पत्नी हीरामणी माहेश्वरी के जीवन में घटित घटनाओं का अंकन कवि ने अपनील लेखनी में उतारा है और फिर कागज पर एक कहानी के रूप में उद्गार
यादगार बन कर कागज पर उतरे हैं।
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प्रथम में तो सवाल यह उठता है कि किस प्रकार से कवि के मन में यह बात आई कि उसे अपने पत्नी के उद्गारों को कलमबद्ध करना चाहिए।इस क्रम में यह जिक्र लेखक करता है कि ____
” अंकल ! मैं बस यही चाह रही थी कि आप आंटी जी के मन के उद्गारों को समझकर एक नई पुस्तक का स्वरूप प्रदान करें।”
कविता ने फोन पर बात करते हुए कहा।
अपने चिर _ परिचित के इस निवेदन पर बात अपनी पत्नी से करके उन्हें लेखक ने इस बात के लिए तैयार कर लिया कि विगत 50 साल के अपने संस्मरण अपनी जुबानी कहेंगी और लेखक अपनी कलम से कागज पर उतार का पाठकों को परोसेगा ।इस प्रकार से कृति की सर्जना सुनिश्चित हुई।
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अपने 5 वर्ष की उम्र का एक अनुभव सुनाते हुए हीरामणी कहती हैं कि ___
” हां! जब मै पांच छः वर्ष की बच्ची थी तब मैने मां के कहने से इस मंदिर में आना आरंभ कर दिया था।सर्वप्रथम
हमारी गली में स्थित
गणेश जी के मंदिर में जाने लगी थी।अबोध बचपन निस्वार्थी एवम
निष्कपट होता है।इसलिए भगवान के कोई दर्शन करते वक्त कोई अपेक्षा नहीं होती थी।अनेक अवसरों पर समझदारी से अच्छी नासमझी होती है, अपेक्षाओं से मुक्त दर्शन करती रही।तब कहीं आज के आधुनिक युग की तरह खिलौने नही मिलते थे , हां लकड़ी ब मिट्टी के कुछ सस्ते खिलौने जरूर मिल जाते थे।किंतु मेरा तो बचपन खेल खिलौने खेलने में दूर रहा था।”
( पृष्ठ संख्या: 17.)
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जब हीरामणी जी 12 _13 वर्ष की थी , उनकी भाभी का आगमन परिवार में हुआ,उस समय का आज अनुभव आप भी देखिए ____
” जब मै 12 _ 13 वर्ष की थी तब मेरे बड़े भाई की शादी हुई थी।फिर घर में भाभी का आगमन हुआ।उन्हे एक हाथ के लंबे घूंघट में रहना पड़ता था। शर्म _ लज्जा से ज्यादा यह डर सताता था कि कोई कुछ बोल न दे।घूंघट की परछाई कहीं भी आने _ जाने पर भी पी छा नही छोड़ती।कुछ दिनों के बाद भाई के द्वारा भाभी के बाहर जाने का सिलसिला बंद कर दिया गया। पराधीन
नारी की विवशता होती है जिसे वह मन मसोस कर चुपचाप स्वीकार कर लेती है ”
( पृष्ठ संख्या : 28 )।
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एक डिंकी बात का जिक्र राधेश्याम जी ने अपने इन शब्दों में किया है ____
” उन्होंने दर्पण से मुक्त होकर एलबम के खजाने में से विवाह का एल्बम निकाला और शयन कक्ष में पहुंचकर
एलबम की धूल साफ की। एल्बमों की जिंदगी भी अजब गजब होती है।जब बनकर आते हैं तो सजा _ संवारकर रखा जाता है।धीरे _ धीरे वे बढ़ती उम्र की तरह मटमैले एवम उपेक्षित हो जाते हैं।
हालांकि आज के युग में मोबाइल और कंप्यूटर जीवन के कुछ क्षणों को कैद कर सुरक्षित रख देते हैं। ”
( पृष्ठ संख्या : 60.)।
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सिंदूर को रेखित करते अपने विचार लेखक की श्रीमती जी एक कविता में कुछ इस तरह से प्रकट करती हैं ____
” यह सिंदूर नहीं ,
कर्तव्य की जंजीर है।
धर्म की पतवार है।
जीवन की स्वांस है।
सिंदूर भरते समय,
अंगूठे और उंगली के स्पर्श ने किया संकेत,
तन मन के मिलन का संदेश है।”
( पृष्ठ संख्या : 86.)।
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एक अनुभव बताते हुए श्रीमती जी कहती हैं कि
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” एक समय की बात है , आप कहीं बाहर गए थे और अचानक आपको ऐसा लगा कि उसके साथ कोई दुर्घटना घटित हो गई थी
। आप तत्काल वापस आए थे । बिटिया ने अपनी उंगली बिजली के प्लग में डाल दी थी।
इसी प्रकार जब मकान के बाहर पशुओं को पानी पिलाने वाले हौज
के पानी में डूबने के समय भी आपको तत्काल पूर्वाभास हो गया था।आपको उसकी जन्म से लेकर मृत्यु तक
प्रत्येक घटना का पूर्वाभास हो जाता था।शायद यह पूर्व जन्म का संबंध था।”
( पृष्ठ संख्या : 112.)।
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दीवाल पर लगे दर्पण में अपना चेहरा निहार कर एक कविता लेखक की पत्नी के मुख से उकर उठती है जिसका एक अंश इस तरह से है _____
” कुछ अलग सा हो गया,
अंतर्मन ने झकझोर दिया,
मिरर बोल पड़ा,
तन का श्रृंगार बहुत हुआ,
कब तक नयनों को धोखा देगी,
अब,
मन को सृंगारित करें,
तन की फिक्र कम कर,
जो छुपा है वह बाहर लाओ,
तन के लिए तो मिल
जायेंगे अनेकों मिरर।।”
( पृष्ठ संख्या _ 119.)।
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वाचिका को यह लगता है कि जिंदगी में सब कुछ बंट सा गया है,ऐसी धुन में एक गजल की रचना हो जाती है ____
” जिंदगी सिर्फ बड़ी सजा ही नही,
और क्या सोच है पता ही नहीं,
कितने हिस्सों में बंट गया हूं मैं,
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं,
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो,
आइना झूठ बोलता ही नहीं,
धन के हाथों बिक गए
हैं सभी,
सच घटे या बढ़े तो सच न रहे ।।”
( पृष्ठ संख्या : 131.)।
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एक स्थान पर श्रीमती जी कहती हैं कि ___
” खैर जो भी हो जीवन में माया का विस्तार हो गया।दामाद बहू आ गए।जीवन का रंग बदल गया। रहन सहन का ढंग बदल गया।जीवन बड़ा हो गया। दायित्व बढ़ गया।
साहस , आत्म विश्वास और संतोष में भी बढ़ोत्तरी हुई।”
( पृष्ठ संख्या : 140.)।
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एक स्थान पर देखिए श्रीमती जी कया कहती हैं ____
” विश्वास की इस माला में एक कड़ी और महत्त्व पूर्ण होती है।कभी भी अपने मायके का गुणगान कर अपने ससुराल को कमजोर नहीं बनाना चाहिए। मायके की बात ससुराल में और ससुराल की बात मायके में नहीं करना चाहिए।”
( पृष्ठ संख्या : 156.)।
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अपने उद्गार की इति लेखक की पत्नी जी कुछ इस प्रकार से करती हैं ____
” अंततः हमे ईश्वर के चरणों में शीश झुकाकर आत्मीयता के साथ अपनी वाहनों में बैठकर अपनी अपनी गृहस्थ दुनिया में लौटने
के लिए निकल पड़े।मधुर स्मृतियों को संजोए सुखद भविष्य की कामनाओं के साथ
विदा हो गए।”
( पृष्ठ संख्या : 161.)।
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ए के वर्मा के आमुख और लेखक के लेखकीय ने कृति को और गुरूता दी है।
पत्नी एक रिश्ता का मुख पृष्ठ बेजोड़ है सजावट के साथ आदर्श नारी का चित्र भला लगता है।अंतिम आवरण पृष्ठ पर लेखक का जीवन परिचय कृति को और निखारता है।
अच्छे श्रेणी के कागज पर अच्छी छपाई और मनहर साज सज्जा कृति को बेजोड़ बनाती है। कुल मिलाकर कृति संग्रहणीय है,इसमें दो राय नहीं।
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उक्त समीक्षा नितांत मौलिक और अप्रकाशित है।
____गिरीश चन्द्र ओझा ” इन्द्र “,श्री दुर्गा शक्तिपीठ,अंजुवा,आजमगढ़, ऊ 0 प्र 0 _ 276127
दि0: 14 / 10 / 2023 ई 0/////

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