December 4, 2024
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दुलरुआ कोन्दा भैरा के गोठ– एक नवा उदिम
–डॉ. सत्यभामा आड़िल
सोशल मिडिया के कतकोन ग्रुप म अपन झलक देखावत “कोन्दा भैरा के गोठ” ह सुशील भोले के नवा “उदिम” आय, छत्तीसगढ़ी भाखा अउ साहित्य म! मंय तो चकित हो गेंव पढ़के। चकित एकर सेती–कि कोन्दा गोठियावत हे अउ भैरा ह हुंकारु देवत सुनथे! सुशील ह हमर गाँव अउ लोकजीवन के संस्कृति के रिवाज बताथे कि कइसे हमन मया अउ दुलार म अपन भाँचा-भाँची, नाती-नतुरा अउ गाँव के कतकोन मयारुक अउ दुलरुआ लईका मन ला अईसन अलवा-जलवा नाॅव धरके पुकारथन!
कोन्दा, भैरा, लेड़गा, सुनसुनहा/ही, खनखनहा, तोतरी/रा, खोरवा, डंगचघा, चमकुल, रिसहा,—
अतेक असन नाॅव धरथें– गाँवलोगन मन! त ये सब मया पिरीत के धरे नाॅव आय। दुलार म धरे नाॅव आय! नाॅव म वो गुन देखे बर नई मिलय! ये ह हमर गाँव के संस्कृति के खास बात आय! सुशील ह छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति के जागरूक रखवार आय। शब्द अउ अर्थ ल संजो- संजो के नवा उदिम करे हे! पढ़ के अब्बड़ निक लागथे!
संगी-जवंरिहा के सुग्घर गोठ-बात आय।
“कोन्दा भैरा के गोठ”- बात म–दुनिया भर के विषय हावय! राजनीति के दू चाल, वादा करथे फेर निभावत नइये, करनी अउ कथनी के भेद ल दूध-पानी सहीं अलग करके गोठियाथे!राजनीति–खाली राजनीति आय , शतरंज के खेल, तिरी-पासा! कोनो पार्टी होवय, सबो एक बरोबर।कुर्सी म बइठिन, तहाँ ले एक बरोबर!
कोन्दा भैरा, तीज तेवहार ल पकड़थे त छत्तीसगढ़ के सबो मूल तेवहार के इतिहास बताथें, उँखर महिमा के बखान करथें! एक -एक रीत रिवाज के सुरता देवाथे!
धरम-करम के गोठ होथे, त “आदि संस्कृति” के सुरता करके नन्दावत सनातन धरम के दुख मनाथें! कोन्दा भैरा के गोठ मा अपन देसराज के
के पहनई–ओढ़ई ल बिसार के परदेसिया रंग म रंगत लोग बर ताना कसथे!
छत्तीसगढ़ी भाखा म गोठियावत नकलची दरबारी मन के पोल खोलत कोन्दा भैरा के गोठ ह बियंग के धार ल तेज करथे!

ये बिधा के उदिम म किस्सागोई के आनन्द आथे गोठ म नाचा गम्मत के हाँसी घलो होथे। ताना कसके ” शब्दभेदी” बान चलाथे।
समाज म बाढ़त अपराध, चोरी ढारी, भ्र्ष्टाचार , इज्जत लुटई , सराब खोरी, फोकट म पावत चाँउर अउ कामचोरी! सबो डहार–चारोमुड़ा के समस्या ऊपर कोन्दा-भैरा के नजर पड़थे! लईकन के पढई-लिखई ल लेके, अस्पताल म होवत लापरवाही अउ घोटाला के पोल खोलथे!
आखिर म गोठ ल समेटत , सुशील के ये नवा उदिम के जतका तारीफ करे जाय, कमती हे!
छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य के संसार म, कोठी म। “कोन्दा-भैरा के गोठ” के स्वागत हे!” मोर असीस फलय -फुलय'”! सुशील जुग जुग जियय अउ नवा नवा सिरजन करे बर कलम चलावत रहय!
-डॉ. सत्यभामा आडिल
पूर्व अध्यक्ष,–हिन्दी अध्ययन मंडल
पं. रविशंकर वि.वि, रायपुर ,(छ,ग,)

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