आज के कवि- अंतरा श्रीवास्तव की दो कविताएं
अधूरापन
अधूरापन
इंधन है जीवन का
पूर्णता की परीपूर्णता तो
रिक्त कर जाती है
खुलने वाले बहुआयामी
अंतर्मन के अंतरिक्षों को
तभी पृथ्वी जी रही है
आधे सच से
आधे झूठ ने मजबूती से
पकड़ रखा है धुरी को
जिस दिन पूरे सच ने छू लिया
धम्म से गिर जाएगी बीचोबीच ब्रम्हांड के
चल रही है सृष्टि
योगियों के आधे खुले नेत्र से
आधी खुली ईश्वर की हथेली से
आधे खुले प्रेमियों के होंठ से
स्वप्नों के अधूरेपन से
आधा दिन आधी रात
स्मरण करवाया करते हैं
अधूरेपन की वास्तविकता
शब्दों के अधूरेपन की दरार से ही
पनपती है उत्कंठा
अमर हो जाया करती हैं अक्सर
अधूरी कहानियां
अधूरापन खींचता है
और सींचता भी है जीवन को!
आश्रय
जब कभी जीवन प्रेमविहीन लगे
नदी किनारे जाओ
भर देगी अपना प्रवाह हर कोशिका में
पहाड़ों की गोद में जाया करो
हजारों वर्षों की गर्माहट समेटे है
कुत्ते बिल्लियों के करीब रहो
ईश्वर उनके माध्यम से तुमसे प्रेम करते हैं
पेड़ों से बातें करो
उनसे बेहतर दर्द कोई नही समझता
पंछियों को पास बुलाओ
ज़िंदगी चुगने का गुर सिखाएंगे
तितलियों को हथेली पर बिठाओ
हृदय को कोमलता का रंग देंगी
आसमां के सीने से लग जाओ
इंद्रधनुषी मन वही बनाया करते हैं
संगीत के सुरों में भटको
तुम्हारी दबे हुए रागों को सहलाएंगे
रंगों को अपनी आत्मा पर उढेलो
खुद की श्रेष्ठतम कलाकृति बनो
परन्तु
प्रेम की आस मनुष्य से कभी न करो
उसे समझने में सदियों का वक्त लगेगा!