कवि लेखक रवि तिवारी के दो सामयिक चिंतन
विश्वास
विश्वास वह शब्द है, वह अहसास है, वह शक्ति है, वह प्रेरणा है जो इंसान को हर संकट से, हर कठिन डगर से, हर भय से मुक्त करते हुए उभार देती है। मिशाल के तौर पर कठिन समय पर फसने पर हनुमान चालीसा का पाठ, रब का ध्यान, गुरुनानक की अरदास, ईशु मसीह के स्मरण से ही इंसान के मन मे शक्ति के विश्वास का अहसास हो जाता है। इस तरह से हर संकट के समय सच्चे व अच्छे लोगो का साथ चाहे वे दोस्त हो रिश्तेदार हो सहपाठी हो या अधीनस्थ कर्मचारी इनके साथ का विश्वास ही जीत के लिए संजीवनी बूटी का काम करता है।
विश्वास जैसे गहराई लिए शब्द के साथ लोग आसानी से विश्वासघात करने लगे है, जिस कारण सामाजिक संरचना बिगड़ती ही जा रही है,लोग अमीर तो बन रहे है,राजनैतिक दल सत्ता का सुख भी भोग रहे है,भगवान के नाम पर लोगो को गुमराह भी कर रहे है,उद्योपति अपना समान भी खूब बेच रहे है,मीडिया लोगो के बीच रोज की चर्चाओं का एजेंडा भी तय करने की शक्ति प्राप्त कर चुका है,सरकारे लोगो को खूब आकर्षित भी करती है अपनी योजनाएं बता कर। जीवित भगवान आम जनता के मध्य अपनी पैठ गहराई तक जमाते जा रहे है,लेकिन समय के साथ मिलने वाला धोखे ने लोगो के मन में इन लोगो या संस्थाओं के प्रति अविश्वास की भावनाए कूट कूट कर भर दी है। अतः इसी सामाजिक बीमारी ने लोगो को जाने अनजाने में आपराधिक दुनिया मे प्रवेश करा दिया है।
आज आम जनता का जहाँ अपने स्वयं के द्वारा चुनी हुई सरकार पर विश्वास सबसे अधिक होना चाहिए वही अब सबसे अधिक अविश्वसनीय हो चुकी है। सरकारी स्कूल, सरकारी हॉस्पिटल, सरकारी योजनाएं, सरकारी घोषणाएं, सरकारी संस्थाएं, सरकारी व्यवस्थाएं, सरकारी रोड पुल पुलिया, चुनाव,चुने गए जनता के प्रतिनिधि, लोकतांत्रिक मूल्य और सरकारी लोग आम जनता के मध्य अविश्वनीयता के मिसाल बन चुके है। अब हालात ये है कि इन पर आम जनता का विश्वास केवल अपने पैसो की शक्ति के आधार भी हो पाता है इसके अलावा सब निरंक है,खोखला हो चुका है सब कुछ।
वर्तमान में आम जनता का विश्वास सरकार से कही अधिक निजी संस्थानों पर हो गया है, मिशाल के तौर पर इस कोरोना महामारी में जो टीकाकरण हो रहा है वह शासकीय अस्पतालों में निशुल्क है और निजी अस्पतालों में 250 रुपये फीस के बाद लगाया जा रहा है फिर भी लोग निजी अस्पताल में जाकर लगवाना अधिक पसंद कर रहे है। भारत के सभी सरकारी कल कारखाने,सेवा संस्थाएं चाहे वे जिस किसी भी क्षेत्र में हो डूब रही है तथा सभी बिकने की स्थिति में आकर खड़ी हो गयी है और वही दूसरी ओर उनकी जगह निजी संस्थाएं खूब फल फूल रही है। आज देश की आम जनता के दिलो दिमाग मे टाटा कंपनी का हर कदम विश्वास की एक मिसाल है।
देश के मीडिया पर से तो अब लोगो का विश्वास ही समाप्त हो रहा है इसके स्थान पर आम जनता सोशल मीडिया पर अत्यधिक विश्वास करने लगी है।नेताओ पर तो अब विश्वास रहा ही नहीं। सरकारी अधिकारी भी इसी राह पर है वही अब देश की अदालतें भी अविश्वास की राह पर चलती नजर आ रही है। संवैधानिक संस्थाओं की जनता के प्रति नैतिक जिम्मेदारियों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है उसके जगह व्यक्तिगत लाभ के लालच ने लोगो को घेर कर अनैतिकता की ओर धकेल दिया है। पैसो पदों की लालच में देश मे अनैतिकता व अविश्वास तेजी से बढ़ते ही जा रहा है।
विश्वास की लगातार होती कमी के कारण ही हर चीज जनता की नजर में शक से देखी जाने लगी है। अब ना तो विश्वास बजट पर वादों पर और नाही सरकारी घोषणाओं पर रहा,पूरी की पूरी देश की वर्तमान व्यवस्था ही चरमराने लगी है यह कब धराशाही हो जाए इसका भी कोई विश्वास नही रह गया है। खाने में मिलावट,नकली दवाइया,नकली खोवा दूध, मिठाईयां,तेल और तो और हवा में बढ़ता प्रदुषण भी हमारी लापरवाही का ही नतीजा है। विश्वास की कमी ने कारण ही परिवार टूट रहे है,रिश्ते नाते छूट रहे है,दोस्ती निभ नहीं रही है, संकट के समय कोई साथ देगा यह भी विश्वास नहीं रह पाता है। क्या करेंगे केवल पैसा कमा कर जब इंसान ही एक दूसरे पर विश्वास ही करना छोड़ देगा तो .. जरा समय निकाल कर सोचियेगा जरूर.....!!
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सबक
कोरोना ने भारत सहित पूरी दुनिया को यह सिखला दिया है कि सभी देशों में मेडिकल व्यवस्था को बहुत बढ़ाने की आवश्यकता है।जिस तरह का हाहाकार पूरे विश्व मे मचा हुआ है तथा लगातार भारी मात्रा में लोगो की मौते हो रही है अतः यह बहुत बड़ा सबक है पूरी दुनिया के लिए की भगवान रूपी प्रकृति की बहुत ईमानदारी के साथ उसकी देख भाल की जरूरत है..पिछले कई वर्षों में प्रकृति के तांडव के बाद भी पृथ्वी के इंसानो को जो सबक लेना चाहिए था वह उसने उतनी गम्भीरता के साथ प्राथमिकता के आधार पर नहीं लिया है और उसी का नतीजा है कि कुछ कुछ दशकों के अंतराल के बाद पृथ्वी निवासियों को प्राकृतिक रूपी भगवान की नाराजगी का परिणाम भोगना ही पड़ता है।
इन्सान अपनी अपनी आस्था या धर्म के अनुसार भगवानों की पूजा अर्चना करता है किंतु इस बात को वह कब समझेगा की इन सब से बहुत ऊपर एक शक्तिशाली भगवान है जिसे हम प्रकृति कहते है इसके आगे इंसानी मान्यता प्राप्त सारे भगवानों या धर्मो की कोई बिसात नहीं है,जब इसकी मार पड़ती है तो ना तो कोई धर्म के आधार पर या जात के आधार पर या उसके भगवान के आधार पर बच पाता है ,सभी को एक समान तरीके से प्रकृति के परिणामो को भोगना ही पड़ता है।
आज संकट है, हाहाकार मचा हुआ है, लोग भटक रहे है,भुगत रहे है,नसीब नहीं हो रही है दवाइयां, इंजेक्शन, डॉक्टर ऑक्सिजन, अस्पताल अतः आज सभी को इस बात का अहसास हो चुका है कि कितने कीमती हो गए है यह सब- पैसे भी है उसे खर्च भी करने को तैयार है किंतु संसाधन नहीं है, मजबूरी हो गयी है, मेडिकल व्यवस्थाएं चरमरा गई है, कोई भी काम नहीं आ रहा है सब कुछ भगवान भरोषे हो गया है। सरकारे भी अपनी ओर से पूरी कोशिशें कर रही है इसमे कोई शक नहीं है लेकिन यह त्रासदी इतनी भयंकर होती जा रही है कि सभी असहाय महसूस कर रहे है फिर भी हिम्मत से संकल्प के साथ इस दिशा में काम जारी है। इस बात का तो आज किसी को पता नहीं कि इस कोरोना काल के कठिन समय से कब मुक्ति मिलेगी, किन्तु पूर्ण विश्वास है कि होगा वह भी बहुत जल्द।
एक बात तो तय है कि विश्व की पूरी इंसानी जमात को इससे बहुत बड़ा सबक लेना चाहिए तथा अपनी सोच, हरकतों या दिनचर्या पर नियंत्रण करना होगा जिससे प्रकृति के साथ भविष्य में खिलवाड़ ना हो सके साथ ही इसे भगवान से भी ऊंचा दर्जा मिले। इसके साथ ही उसे अपनी सोच को भी पुख्ता करना होगा कि इस दुनिया मे मंदिर मज्जिद,गुरुद्वारा या चर्च से कही अधिक आवश्यकता मेडिकल व्यवस्था के विस्तारीकरण व उसको मजबूती प्रदान करने की है तभी हम सब अपनी इंसानी जमात की सही देखभाल कर सकेंगे।
सादर
रवि तिवारी