जापानी का गद्य काव्य हाइबन विधा
हाइबन विधा हाइकु,तांका, सेदोका और चोका विधा की ही तरह एक जापानी विधा है। इसके बारे में विस्तृत जानकारी निम्नानुसार है:
‘हाइबन’ जापानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘काव्य-गद्य।
इसलिये ‘हाइबन’ गद्य तथा काव्य का संयोजन है।
17वीं शताब्दी के कवि बाशो ने इस विधा का आरंभ 1690 में अपने एक दोस्त को खत में सफरनामा /डायरी के रूप में ‘भूतों वाली झोंपड़ी’ लिख कर किया। इस खत के अंत में एक हाइकु लिखा गया था।
हाइबन की भाषा सरल, मनोरंजक तथा बिम्बात्मक होती है।
इस में आत्मकथा, लेख , लघुकथा या यात्रा का ज़िक्र होता है। इस में गद्य लेखन में एक या दो पैराग्राफ़ हो सकते हैं और विषयानुसार एक या दो हाइकु आ सकते हैं।
प्रस्तुत गद्य हाइकु की व्याख्या नहीं होता ,बल्कि जो वर्णन गद्य में किया है उसके अनुसार हाइकु लिखा जाता है।
साथ ही यह भी ध्यान अवश्य रखें कि भाषा पूरी तरह सधी हुई हो। अनावश्यक शब्दावली न हो और गद्य-पद्य की इस विधा में गद्य अनावश्यक रूप से या ज्यादा लम्बा भी न हो।
उदाहरण:
बहुत दिनों बाद कुछ दिन पहले अवकाश मिला, तो लगा कहीं भ्रमण कर आते हैं ।
सपरिवार हिल स्टेशन जाना तय किया।वहाँ पहुँच कर बच्चे तो मस्ती में जुट गये और हम प्रकृति छटा निहारने में । सच कितना सुन्दर है हमारा देश। प्राकृतिक छटाओं ने बरबस ही मन मोह लिया। झील के पानी में प्रकृति की प्रतिकृति दिख रही थी, लगा जैसे “प्रकृति-सुंदरी” पानी में अपना रूप निहार रही हो। स्वतः ही मन से भाव- सरिता बहने लगी।
नीर-दर्पण
झलक दिखलाता
प्रकृति- रूप
अभी घूम ही रहे थे कि बर्फ़बारी होने लगी। बर्फ ऐसे बरसने लगी जैसे रूई के फाहे आसमान से उड़ते चले आ रहे हैं। एकाएक ठण्ड बेहद बढ़ गई थी।बच्चे सिमट कर पास आ गये।सभी ऊपर से नीचे तक गर्म कपड़ों में ढके नज़ारा देख रहे थे। अचानक ध्यान गया पहाड़ों पर। पहाड़ बर्फ की तह से कुछ इस प्रकार आच्छादित हो गए थे कि यूँ लगा जैसे रूई की चादर ओढ़े खड़े है और उन पर से गिरती बर्फ उस चादर से गिरते रूई के फाहों की तरह लग रही थी।
गिरि ठिठुरा
ओढ़ी हिम चादर
रूई बिखरी
@महिमा श्रीवास्तव वर्मा
सारांश में कहें तो किसी बहुत ही छोटी-सी कथा या घटना के बाद उससे संबंधित एक हाइकु, यही हाइबन विधा होगी