उड़न खटोले पर बैठी एक प्रेम कथा -कामकंदला और माधवनल
छत्तीसगढ़ की एक ऐसी अमर प्रेम कथा जो पूरे देश भर में सुनी सुनाई जाती है ।कामकंदला की प्रेम गाथा को अपने समय के दिग्गज विद्वानों ने लिखा। लोक गाथाओं में रची बसी माधवनल और कामकंदला की प्रेम कथा जनमानस में आज भी छाई हुई है।
प्रेम कथाएं काल की प्राचीरो को फलांगती हुई देश राज्य की सीमाओं को लांघकर बोली, भाषा के बंधनों को तोड़ती हुई निरंतर अपने अस्तित्व का विस्तार करते चलती हैं। ऐसी ही प्रेम कथाओं में से एक है कामकंदला माधवनल की कथा।इस प्रेम कथा की अनेक भाषाओं में 44 पांडुलिपि आज भी मौजूद हैं,उनमें सबसे पुरानी पांडुलिपि ताड़पत्र पर लिखी गई है जिस पर अंकित तिथि है संवत 542।
माधवनल और कामकंदला कहां के थे ? पाकिस्तान के पंजाब से भारत के बंगाल तक हर जगह दावा किया जाता है कि माधवनल और कामकंदला उनके इलाके के हैं। इनकी कथा तंजावुर,नेपाल, बनारस, कश्मीर, गुजरात, काठियावाड़,सिंध,बंगाल,मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी लोकप्रिय है।
प्रेमगाथा का रचना संसार- इस अनूठी दिलचस्प प्रेम गाथा पर गुरु गोविंद सिंह की लेखनी चली। उससे पहले यह प्रेम कथा संस्कृत में लिखी गई थी। 10 वीं सदी में यह कथा भारत के कई इलाकों में सुनी सुनाई जाती थी। बादशाह अकबर के दरबारी कवि जोध ने इसे संस्कृत में रचा। जोध रचित कामकंदला माधवनल की प्रेम कथा श्रृंगार रस से सराबोर है। इसमें कामशास्त्रों के सिद्धांत की भी चर्चा बड़े विस्तार से की गई है। साहिब सिंह ज्ञान ने इसे गुरमुखी में लिपिबद्ध किया। मराठी, गुजराती, बृज और बंगाली के विद्वानों ने भी इस प्रेम कथा को अपने अपने तरीके से लिखा।
राजस्थानी में गणपति ने 1527 में माधवनल कामकंदला की रचना की। कामकंदला की कथा को लेकर आनंद़र ने संस्कृत में ‘माधव नाट्कम’ लिखा। हिंदी में इस कथा को 1583 में पद्यबद्ध किया कवि आलम चंद ने जो सर्वाधिक लोकप्रिय हुई। आलम चंद की कथा के आधार पर 1755 में हरनारायण खासकलम ने ‘माधव नल की कथा भाषा’ नामक ग्रंथ की रचना की।संस्कृत नाटक की हस्तलिपि ब्रह्मपुरी के पंडित लक्ष्मण भट्ट के पास थी। एक हस्तलिखित किताब ‘माधवनल की कथा’ बनारस के पुस्तकालय में संग्रहित है। देखें हिंदी हस्तलिखित पुस्तकों की खोज, 1904 की वार्षिक रिपोर्ट, बाबू श्यामसुंदर दास पृष्ठ 15-47।
हिंदी में मोतीराम, बोधा,हर नारायण,गुरु गोविंद सिंह, आलम चंद और बुध सिंह ने माधवनल और कामकंदला की प्रेम कथा लिखी। अधिकांश विद्वानों ने इसे काव्यात्मक शैली में लिखा। मजहर अली विला और लल्लू लाल ने इस कथा का उर्दू अनुवाद किया। 1805 में उर्दू अनुवाद हिंदुस्तानी प्रेस कोलकाता से प्रकाशित हुआ।
इतिहास के झरोखे से- ऐतिहासिक साक्ष्य और पुरावशेषों के आधार पर कहा जा सकता है कि कामकंदला और माधवनल दोनों मध्यप्रदेश के थे। छत्तीसगढ़ का वर्तमान डोंगरगढ़ के इतिहास में ढाई हजार साल पहले माधव नल और कामकंदला की प्रणय गाथा प्रस्फुटित हुई थी। तब डोंगरगढ़ कामाख्या नगरी के नाम से प्रसिद्ध था जहां के राजा कामसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे राजा कामसेन कला का पारखी था जहां की राजनर्तकी थी कामकंदला।
मध्यप्रदेश के कटनी- मुरवारा मार्ग पर एक गांव है बिलहरी। बिलहरी गांव की पहाड़ी पर कामकंदला का मंदिर जीर्ण अवस्था में है। जबलपुर जिले के गजेटियर में इसका उल्लेख किया गया है।
बिलहरी को किसी जमाने में पुष्पावती नगरी कहा जाता था, तब वह भव्य और समृद्ध राजनगर था। इस प्राचीन नगरी में अवशेष बिखरे पड़े हैं जहां ब्रह्मा विष्णु महेश की त्रिमूर्ति है। कामकंदला का मंदिर होने का प्रमाण है लेकिन मंदिर में माधवनल के नाम का कहीं उल्लेख नहीं है।
माधवनल और कामकंदला की प्रेम कथा में प्राचीन पुष्पावती नगरी की चर्चा है। राजा गोविंद चंद की नगरी में माधवनल प्रसिद्ध वीणा वादक था, वीणा वादन के कारण ही राजा ने उसे देश निकाला का आदेश दिया था। और अब पढ़ें अनूठी प्रेम कथा को…..
लेखक – रवीन्द्र गिन्नोरे, भाटापारा