निंदक नियरे न राखिए कुछ दिनों पूर्व सैकड़ों रचनाकारों के वाट्सएप समूह से एक लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार को केवल इसलिए रिमूव कर दिया गया क्योंकि उन्होंने पत्रिका के संपादक एवं एडमिन द्वारा किए गए संबोधन में हुई त्रुटि पर उँगली उठाते हुए संशोधन की बात कह दी। शायद वे इस बात से अनभिज्ञ थे कि चाटूकारिता एवं आत्ममुग्धता के इस दौर में ‘निंदक नियरे राखिए’ की जगह , ‘निंदक नियरे न राखिए’ का चलन चल रहा है।
छंदों की विविधता तथाकथित छंद गुरु से जब यह पूछा गया कि आप कितने प्रकार के छंद सिखाते हैं। विद्वतापूर्ण मुसकान बिखरते हुए उन्होंने कहा लगभग सभी प्रकार के। संख्या पूछे जाने पर गर्व के साथ पचास से ऊपर कहा। किस घराने से ताल्लुक़ रखते हैं सवाल पर वे बगल झाँकने लगे। दरअसल हिन्दी साहित्य में गुरु – शिष्य परंपरा का चलन नहीं है। कविता न सिखाई जाती है न सीखी जाती है। गॉड गिफ्टेड अर्थात भगवान की देन होती है। उर्दू साहित्य में शुरू से उस्ताद और शागिर्द की परंपरा का चलन रहा है।देखादेखी हिन्दी साहित्य में भी विशेषज्ञ की जगह छंद गुरुओं की बाढ़ आ गई है। बहुत कम लोगों को पता है कि हिन्दी छंद शास्त्र में ( वर्णवृत्त,मात्रिक एवं अक्षर गणात्मक) 67000 से अधिक छंदों का उल्लेख मिलता है। जिसे अध्यन एवं अभ्यास से कोई भी सीख सकता है।हिन्दी छंदों की विविधता ही भारतीय वांग्मय की मज़बूती का ठोस आधार है।
फ़र्श से अर्श तलक संदीप की व्यावसायिक तरक्की एवं संपन्नता के पीछे वो एक कमरे का मकान है जिसमें माँ के टपकते आँसू एवं सिर से टकराती छत की मार्मिक कहानी छिपी है। फ़र्श से अर्श तलक की यात्रा में उसके हर उस लम्हे का हिसाब मौज़ूद है जिसे वह अपने मन के बहीखाते में कभी न भूलने के लिए दर्ज़ कर रखा है। जिस दिन वह अपने पुराने दिनों को भूल जाएगा अर्श से फर्श तलक की यात्रा आरंभ हो जाएगी डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ क्वार्टर नं.एएस-14,पॉवरसिटी अयोध्यापुरी,जमनीपाली जिला-कोरबा (छ.ग.)495450 मो.7974850694 9424141875