November 21, 2024

समीक्षा : मुस्कान के साथ सोचने को विवश करती “ये दुनिया वाले पूछेंगे”

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सर्वप्रथम “ये दुनिया वाले पूछेंगे” व्यंग्य संग्रह हेतु डॉ. प्रदीप उपाध्यायजी को बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएँ. इस पुस्तक का प्रकाशन सर्वप्रिय प्रकाशन, दिल्ली ने सुंदर रंगीन आवरण में मूल्य रुपये 100 रखकर किया है. पुस्तक में प्रयुक्त कागज और प्रिंटिंग दोनों बढ़िया है. 144 पेजों की इस पुस्तक की कीमत ₹ 100 आज के समय में वास्तव में कम है. इसके लिए सर्वप्रिय प्रकाशन को मैं निश्चित रूप से धन्यवाद कहूँगा. एक सच यह भी है कि अगर मूल्य कम रहता है तो प्रति ज्यादा बिकती है.

श्री उपाध्यायजी अपने व्यंग्य रचनाओं के लिए पूरे भारत में जाने जाते हैं. इनकी रचनाएँ अक्सर दैनिक समाचार पत्रों में पढ़ने को, देखने को मिल जाता है. मैंने पूर्व में भी एक जगह इनके बारे में लिखा था कि श्रीलाल शुक्ल के बाद व्यंग्य लेखन में एक बहुत बड़ी रिक्ति आ गयी थी, खालीपन आ गया था. उस खालीपन को भरने में उपाध्यायजी का बहुत बड़ा योगदान है. इनके व्यंग्य आमजन से जुड़े हुए, सीधे सरोकारों के और सीधे शब्दों में तीक्ष्ण प्रहार करते हैं. पाठक के चेहरे पर मुस्कुराहट आती है, क्षण भर सोचने को विवश होता है. इनका व्यंग्य कहीं बहुत गहरा तो कहीं बहुत ऊँचा रहता है. उपाध्यायजी अपनी बात बहुत सादगी से और बहुत भारी बात बहुत आसानी से कह देते हैं.

पुस्तक के प्रारम्भ में श्री गिरीश पंकजजी की लिखी प्रस्तावना है जिसमें वे कहते हैं कि आज व्यंग्य के नाम पर एक नयी विधा “कुछ भी” लिखा जा रहा. व्यंग्य एक साधना है, प्रतिवाद है, प्रतिरोध है. व्यंग्य अराजक समय के विरुद्ध एक साहित्यिक हस्तक्षेप है. दुर्भाग्य है कि व्यंग्य को मनोविनोद का साधन समझ लिया गया है.

यह पुस्तक दो भागों में विभक्त है. एक भाग ‘खौफ के साये में’ और दूसरा भाग है ‘खुले आसमान के तले.’ इस पुस्तक में कुल 54 रचनाएँ हैं और सभी रचनाएँ कोरोना को केंद्र में रखते हुए अलग-अलग विषयों पर हैं. कोरोना वायरस के प्रथम लहर आने के बाद और जाने के बाद की सामाजिक और राजनैतिक स्थितियों की चर्चाएँ हैं. कुछ छोटी रचनाएँ आप बार-बार पढ़ना चाहेंगे. जब भगवान कोरोना के लॉक डाउन के बीच में अपनी स्थिति बताते हैं तो पढ़ते चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. एक जगह न्यू नरक बस्ती की चर्चा है. कभी आपदा में अवसर देखते हैं. ऑनलाइन आना, समाज सेवा में नूतन आइडिया आना, दोपाया और चौपाया की स्वामिभक्ति, मन की बात, रिटायर आदमी की व्यथा कथा ऐसी रचनाएँ हैं जो व्यंग्य के साथ बहुत ही प्रभावशाली बातें हैं. इस पुस्तक की एक ख़ास बात यह है कि भले यह कोरोना से जुड़ी है लेकिन पढ़ने का आनन्द हमेशा आयेगा. कुछ रचनाएँ पाठक को मंत्रमुग्ध कर देते हैं. ‘घूँघट के पट खोल रे तुझे कोरोना मिलेंगे’ बहुत ख़ास रचना है. इसप्रकार के व्यंग्यकार अभी बहुत कम हैं और रचनाएँ बहुत ही साफ-सुथरी और तीक्ष्णता लिए हुए हैं. सभी उम्र के पाठक के लिए पुस्तक उपयुक्त है. एक बार पुनः प्रकाशक को पुस्तक की कीमत कम रखने हेतु साधुवाद. मैं इस पुस्तक के लिए पुनः उपाध्यायजी को बधाई देता हूँ और भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ.
-विभूति भूषण झा.
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