डिम्पल राठौड़ की कविताएं
नीम बेहोशी में खोई रहती हूँ सोई रहती हूँ देखती हूँ रोज़ एक स्वप्न ये दुनिया तबाह हो रही है...
नीम बेहोशी में खोई रहती हूँ सोई रहती हूँ देखती हूँ रोज़ एक स्वप्न ये दुनिया तबाह हो रही है...
दृष्टा तुम हो, सृष्टा तुम हो, परमपिता आशीष सम, इस जीवन के, विश्वास अटल , भ्रमित मन के, निर्मल उजास...
फरवरी माह के बीच दादा का फ़ोन आया , माह के अंत मे कुंभलगढ़ जाने का विचार है , चलोगे?...
1- साफ करो हाथों को मुझसे कोरोना को दूर भगाओ साबुन मुझको समझ न लेना प्यारे बच्चों नाम बताओ ।...
औरत ॰॰॰ औरतों के देह में होती है एक अलग गंध जिससे महकता है पुरुष औरत की देह में होता...
जाति है कि जाती ही नहीं नहीं छोड़ती पीछा कभी छोड़ कर भागना भी चाहे शन्नो जाति भी दौड़ते-दौड़ते पहुँच...
अंतहीन पीड़ा से खुद से मोह मिट गया है, अब दूर निकल जाऊँ मैं बहुत, निर्जनता में, कि, हृदय के...
मनीषा खटाटे नासिक महाराष्ट्र. प्रास्ताविक — काल समय के अनुसार बार बार लौटता है.वर्तमान मनुष्य की सभ्यता फिर से वही...