April 21, 2025

साहित्य

देख सजनी देख ऊपर

देख सजनी देख ऊपर।। इंजनों सी दड़दड़ाती, बम सरीखी धड़धड़ाती रेल जैसी जड़बड़ाती, फुलझड़ी सी तड़तड़ाती।। पंछियों सी फड़फड़ाती,पल्लवों को...

मनोज शाह ‘मानस’ की तीन ग़ज़लें

"कब तक इन बेड़ियों में..." सजती नहीं है दुल्हन अब डोलियों में । अब वो दम नहीं शिकारियों के गोलियों...