ब्रह्मराक्षस – गजानन माधव मुक्तिबोध
शहर के उस ओर खंडहर की तरफ़ परित्यक्त सूनी बावड़ी के भीतरी ठण्डे अंधेरे में बसी गहराइयाँ जल की... सीढ़ियाँ...
शहर के उस ओर खंडहर की तरफ़ परित्यक्त सूनी बावड़ी के भीतरी ठण्डे अंधेरे में बसी गहराइयाँ जल की... सीढ़ियाँ...
मेरे लिये कमीज के बटन का टूटना भी कविता का विषय है टूटते नक्षत्रों को नहीं कर सकता अनदेखा ये...
एक धंधेबाज नकली कवि ने असली कवि से कहा.. मेरे पास बड़े बड़े मंच हैं हजारों की भीड़़ है.. भीड़़...
देर-सबेर आया फाग आत्मा ने देह का, अपना पहला-पहला अवलंब तज दिया था अव नये अवलंब के लिए लालायित थी...
एक पंछी अभी-अभी उड़ कर आया ऐसी जगह बैठा जहां एक मनुष्य की छाया पड़ रही थी मनुष्य जहां खड़ा...
नसीब वाली हूँ जो तेरा इंतख़ाब हूं मैं , तेरी नज़र में महकता हुआ गुलाब हूं मैं l ज़रा -ज़रा...
लक्खू, राम-भजन कब होई? हाथ-गोड़ अब सिकुड़न लागे, कठिन वक्त है आगे, माया ठगनी के चक्कर में, फिरो न भागे-भागे।...
भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी। चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।। पहली जम्मों गांव गांव...
वश में कर सके, है बस में किस के ये बंधन - डोर तुमने ही बांधे कस के सांसों की...
एक छोटे-से बच्चे ने मूँद ली हैं आँखें सब्जी-भाजी और ऐसे ही कुछ नापसंद स्वाद की तरफ़ से जिन्हें माँ...