विनोद कुमार शुक्ल से गुफ्तगू 1 जनवरी को, छत्तीसगढ़ की रचना बिरादरी का आत्मीय आयोजन
नदी जैसे लोगों से मिलने नदी किनारे जाऊँगा कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा... इन पंक्तियों को लिखने वाले सुप्रसिद्ध साहित्यकार...
नदी जैसे लोगों से मिलने नदी किनारे जाऊँगा कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा... इन पंक्तियों को लिखने वाले सुप्रसिद्ध साहित्यकार...
सर्वप्रिय प्रकाशन एवं छत्तीसगढ़ मित्र के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 28 दिसंबर शाम 4:00 बजे वरिष्ठ लेखिका संतोष श्रीवास्तव के...
अपने ही दर्द कम थे क्या जो पराये भी बाँट लिए? सबसे बेरहम दर्द खुद के लिए छाँट लिए! बनकर...
रस की धार अनंत बहती थी अंजुरी भर भर पीया हैं हमने प्रेम प्रकाश के छाँव तले जीवन मधुर जीया...
तुम्हारे विरह में झरती हुई इन नम आंखों की बूंदे तुम्हारे गुरूर से हमेशा बड़ी होंगी ...! तुम्हे बहुत गुरूर...
कई बार किसी व्यक्तित्व के साथ कोई शब्द चस्पा हो जाता है. उस एक शब्द में पूरा व्यक्तित्व समाहित हो...
कई बार किसी व्यक्तित्व के साथ कोई शब्द चस्पा हो जाता है. उस एक शब्द में पूरा व्यक्तित्व समाहित हो...
तुमने नदी को बोतल में पैक किया पहाड़ को खुदाई के औजारों में हवा को सिलिंडर में आकाश को बालकनी...
दिन की तासीर सर्द है कल शाम से सूरज को... भिगोया है बादलों ने और दूर शायद .. रुई के...
किसी कवि ने क्या खूब लिखा है कि- "पंक्षी अगर तुम्हें है अपने पंखों पर विश्वास। तो तुझको न डिगा...