कविता
दुविधा के दुर्गम जंगल में
दुविधा के दुर्गम जंगल में हम राही पथ भटक गये हैं , जाने हम किन -किन की आंखों में बरसों...
बापू के प्रति
आपत्तिअन्यायसंघर्ष में भी रहे देव अपनी अलख तुम जगाए | प्रात: किरण-से उगेतुमजगत में (मुकुलित कमल-सा हुआ मुग्धनत मैं )...
कविता : एक टुकड़ा धूप
आज एक टुकड़ा धूप मेरे हिस्से में आई है, मैंने फिर दिल की ज़मीं पर ख़्वाबों की फसल उगाई है।...
मैं शब्दों को नहीं पिरोती…
मैं शब्दों को नहीं पिरोती हां मैं शब्दों को नहीं पिरोती शब्द स्वयं गुंथ जाते हैं भावों के गुलगुल धागों...
हिंदी कविता- एक दीप जलाना चाहूं…
मन की बगिया सजाना चाहूं । मैं एक दीप.....जलाना चाहूं ।। एक दीप.... जीवन के गगन में, एक दीप अंतर्मन...
मेरी नवीनतम कविता : यौवन मेरा लापता हो गया
कहीं यौवन तो मेरा लापता हो गया कोई चुरा ले गया कि खुद खो गया सब कहते हैं बड़ा ही...