दिन की तासीर
दिन की तासीर सर्द है कल शाम से सूरज को... भिगोया है बादलों ने और दूर शायद .. रुई के...
दिन की तासीर सर्द है कल शाम से सूरज को... भिगोया है बादलों ने और दूर शायद .. रुई के...
रूठे को मैं कैसे मनाऊं, होती जिनसे बात नहीं, यादों में मैं उनके तड़पू उनको मेरा ख्याल नहीं।। कोई जाकर...
अपनी मूर्खता पर नही बल्कि भारतीय वैज्ञानिकों के ज्ञान पर ।। अपनी तानाशाही पर नही बल्कि राष्ट्र के लोकतांत्रिक मूल्यों...
विधा - छंद मुक्त परिचय - निशा खैरवा पुत्री मनोज खैरवा छात्रा रामकुमारी कॉलेज मु.पो. बिदासर,लक्ष्मणगढ़, सीकर राज. भोर भिनसार...
विधा : कविता परिचय-नीतू कुमारी पुत्री -मनीराम जी मु.पो.-कसेरू जिला -झुंझुनूं (राज.) खुद से ही अंजान फिरती है है किसी...
ढलती शाम और डूबता सूरज.. रात्रि के दरवाजे पर आखिरी दस्तक दे..रहे हैं। सूर्य का ताप.. जैसे.. अंँधेरी रात ने...
क्रान्तिकारी कवि लक्ष्मण मस्तुरिया के वीर काव्य सोनाखान के आगी के कुछ अंश भाई-भाई म फूट डार दिन, मनखे-मनखे ल...
विधा - कविता परिचय - ज्ञानीचोर शोधार्थी व कवि साहित्यकार मु.पो. रघुनाथगढ़,सीकर राज. मो. 9001321438 एक दौर था चला गया...
कितना घनिष्ठ है हमारा संबंध... कागज और कलम जैसा...! हृदय के सारे घाव और मन के सारे भाव कागज पर...
किसी भी खेल में कम से कम दो लोग होते हैं एक जीतने वाला एक हारने वाला बिना हार जीत...