कविता
जैसा हूँ वैसा ही रहूँगा(कविता)
मैं किसी और के जैसा,क्यों बनूँ? जैसा हूँ वैसा ही रहूँगा । दूसरों की नकल क्यों करूँ? मैं अपनी भावनाएँ...
“पहाड़ पर कविता”
जंगल को बचाने के लिए, पहाड़ पर कविता जाएगी, कुल्हाड़ी की धार के लिए, कमरे में दुआ मांगी जाएगी, पहाड़...
“उड़ते बादल…”
आंखों ने देखने लगे हैं उड़ते बादल । आंखों में तैरने लगे हैं उड़ते बादल ।। आंखों ने देखे थे...
श्वेता की तीन कविताएँ
मेरी प्रिय सखी कभी-कभी तुम्हारे हिस्से का आसमां और तुम्हारे हिस्से की ज़मी कोई दूसरा ही चुनेगा कुछ पसंदीदा रंगों...
अर्पणा दुबे की दो कविताएँ
पिंजरा मुझे भी अपनी व्यथा कहने दो। पिंजरे से मुझे आजाद रहने दो। इस दुनिया को देखना है मुझे भी...
खिल उठती हूं “मैं”
11/09/2021 अतीत के स्मृति सागर में जब -जब लगाती हूँ गोतें तब -तब खिल उठती हूँ मैं ले आती हूँ...
“हिन्दी जिस ठाँव उस ठाँव में रहूँगा!”
संवाद के क्षण मुझे भान होता है कि मैं ज़िंदा हूँ... मुझे ज़िंदा होने का अहसास दिलाती है भाषा! मेरी...