कविता
रात ढलने के इंतज़ार में
द्रोपती का चीर हो गई आज की रात कुचले हुए आन्दोलन के मंच जैसा सन्नाटा जो घड़ी की टिक-टिक से...
मैं जिधर गई
अलका अग्रवाल जब मैं कलम बन गई, कागज की अनुचरी बन गई l बेतरतीब शब्दों की तब मैं सशक्त, लय-ताल...
मोहब्बत में इतने सारे सवाल क्यों हैं
मोहब्बत में इतने सारे सवाल क्यों हैं, इसे लेकर जमाने में बवाल क्यों है। शोर वरपा है इश्क के मारों...
पापा, पापा
कमलेश चंद्राकर पापा, पापा आ पापा लग गया खाना खा पापा खाना खा ताजा- ताजा काम पे अपने जा पापा...
अपने दिल को दोनों आलम से उठा सकता हूँ मैं
अपने दिल को दोनों आलम से उठा सकता हूँ मैं क्या समझती हो कि तुमको भी भुला सकता हूँ मैं...
कुछ लोग गणित अच्छा जानते है
कुछ लोग गणित अच्छा जानते है, और कुछ - मन को पढ़ना, वे जोड़ते - घटाते थक जाते है जब...
घोड़ा, घोड़ा
घोड़ा, घोड़ा समय का घोड़ा जिससे तेज कोई ना दौड़ा घोड़ा, घोड़ा समय का घोड़ा अड़ा कभी ना थका न...
छत्तीसगढी : तीजा- तिहार
-डॉ संजय दानी ) एकदम तीर आगे हे हमर तिहार पोला अउ तीजा, बहिनी ला देखे बर बड़ फ़ुदकत हे...
एक टूटी हुई छत…
पल्लवी मुखर्जी एक टूटी हुई छत टूटी हुई चारपाई टूटा हुआ छाता कोने में पड़ी जंग लगी साईकिल मिट्टी का...