पुस्तक समीक्षक : “एक अनुजा”
पुस्तक समीक्षक : अतुल्य खरे
समीक्षित पुस्तक : एक अनुजा
लेखिका : नीलम जैन
प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन
“एक अनुजा” के द्वारा सुश्री नीलम जैन ने साहित्य जगत के द्वार पे पुरजोर दस्तक दी है । मूलतः टेक्नोलॉजी क्षेत्र से सम्बद्ध नीलम जी की पत्र शैली में रचित यह रचना जो अपने आप में 106 पत्र संजोए हुए है जो गंभीर एवं गहरी सोच के संग किये हुये सृजन का परिणाम है । सरल वाक्यांश और साधारण शब्दावली है किंतु विचार एवं भाव गंभीर है गूढ़ दर्शन , आध्यत्म , मनोविज्ञान आदि विषयक विचार अन्तर्निहित हैं । पुस्तक के पीछे उनका विस्तृत अध्ययन ,दीर्घ सोच एवं गहन शोध स्पष्ट परिलक्षित होता है ।
जीवन की गम्भीरताओं पर बहुत सूक्ष्मता से विचार कर उसका निचोड़ पत्र रूप में प्रस्तुत किया है । पुस्तक की मूल धारा एवं विचारों को और अधिक स्पष्टता से समझने के लिए चंद पत्र यहाँ उल्लिखित करने की इक्षा थी किन्तु शब्द सीमा को ध्यान में रखते हुए यह दायित्व अब आप पर ही छोड़ता हूँ ।
पत्र शैली में लिख कर विदुषी लेखिका ने स्वयं को किसी एक विषय अथवा कथावस्तु तक सीमित होने अथवा कहें कि किसी विषय के बंधन से स्वयं को मुक्त रखते हुए विचारों को उन्मुक्तता से उभरने एवं विचरण करने की आज़ादी दी है , एवं बेफिक्री से हर एक्षिक विषय से सम्बंधित भाव को सुन्दर सुगम एवं ग्राह्य शब्द रूप में प्रस्तुत किया है । हर पत्र ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी वाद विवाद को प्रारंभ करने हेतु शुरुआती भूमिका दी गयी है । विषय को प्रारंभ कर उसे अत्यल्प विवरण के साथ उनके काल्पनिक पात्र (वास्तव में पाठक ) पर विचारण एवं निर्णय हेतु छोड़ दिया गया है जो वस्तुतः पाठक को वैचारिक कंदरा के मुहाने पर ले जाकर खड़ा कर देता है । काल्पनिक चरित्र के माध्यम से पाठक से संवाद है इन पत्रों के द्वारा , जिनमे द्वैत , अद्वैत , साकार, निराकार , गुण, ब्रम्ह , परम ब्रम्ह की भी चर्चा है , सांसारिकता , धर्म ,आधुनिकता ,पाश्चात्य जगत का प्रभाव जीवन के उतार चढाव या कुछ खट्टी मीठी यादें कुछ कवित्त ,और बहुत सी दैनिक जीवन की बातों एवं यादों को लेकर कुछ टटोलते हुए कुछ ढूंढने की प्रक्रिया में है । जीवन के हर गूढ विषय को लेकर एक कौतूहल है , हर विषय पर बखूबी लिखा है एवं संभवतः कोई भी ऐसी बात जो हमें , आपको हर किसी को अपने रोज़मर्रा के जीवन में चुभतीं सी है वह विदुषी लेखिका कि पारखी नज़रों से बची नहीं है जिसे उन्होंने कलमबद्ध न किया हो । जीवन के सफर का दर्शन जो शून्य से शुरू होकर पुनः शून्य तक आता है , विचारों के आवेग को शब्दों के माध्यम से बहुत ही सधे हुए तरीके से वर्णित किया है । हर पत्र एक नया आयाम देता है पाठक को जीवन के विषय में गहराई से सोचने हेतु ,असंभव से संभव के बीच की संभावनाओं को तलाश करती इस जीवन यात्रा में और डूब जाने हेतु ।
साहित्य रचना के क्षेत्र में उनका यह प्रथम किन्तु सराहनीय एवं सशक्त प्रयास है जो भविष्य में सुधि पाठकों को निश्चित ही सुंदर एवं गंभीर लेखन युक्त रचनाएँ प्राप्ति हेतु आश्वस्त करता है । हर पत्र अपना मंतव्य ज़ाहिर करने के उद्देश्य से एक सोच देकर छोड़ देता है जो निश्चय ही सघन एवं गंभीर विचारण हेतु विवश करता है , जीवन दर्शन के विभिन्न आयामों को गंभीरता से सौदाहरण साधारण वाक्य और साधारण शब्दावली के द्वारा सम्मुख रखा है जिनमें विचार एवं भाव गंभीर है सोच स्पष्ट है साथ ही विभिन्न महान साहित्यकारों की महान रचनाओं और रचनाकारों के बारे में उन्होंने स्वयं भी अध्ययन किया है एवं उसे समुचित स्थानों पर युक्तिसंगत विधि से प्रयुक्त किया गया है । जर्मन लेखक हरमन हेस की जर्नी टू ईस्ट कि बात करती हैं तो कबीर के दोहों को भी और कभी कभी तो पुराने फिल्मी गीतों को भी याद करती चलती हैं. गहन शोध एवं विस्तृत अध्ययन पुस्तक को एक मजबूत आधार देते है।बावजूद इसके सरल वाक्यांश है भाषायी गरिष्टता से बहुत बचते हुए अनावश्यक मुहावरों एवं विशेषण युक्त तथाकथित साहित्यिक भाषा का प्रयोग न करते हुए अपनी बात कही है जो निश्चय ही पुस्तक को पठनीय एवं संग्रहणीय बनाता है एवं इस हेतु लेखिका को साधुवाद । बहुत से विचारों के कारण कभी कभी मन की उथल पुथल , स्वयं को जैसे न समझ पाने का कष्ट जैसा या कहें कि अंतर्द्वंद भी कभी कभी दिखता है.त्याग वैराग्य आत्म कल्याण और वीतराग के सिद्धांतो का काफी प्रभाव भी देखने को मिलता है.
यूँ तो हर पत्र उल्लेखनीय है किन्तु “मंथन” “ध्येय” , “आर्त्ध्याँ” कुछ विशेष एवं कहीं न कहीं झकझोरते लगे. “प्रतिमान” कवित्त रूप में एक साधक के मनोभाव है , अपने आराध्य के प्रति. वैचारिक प्रवाह , उद्गार या भावो का उद्वेलन कुछ भी कहें अध्यात्म या मनोविज्ञान की विभिन्न धारणाएं अथवा दर्शन शास्त्र की जटिल परिभाषाएं सभी के केंद्र में स्वयं को जानने की चाह ही सर्वोपरि है लेखिका स्वयं इसे इंद्रधनुष का पीछा करने की कोशिशें निरूपित करती है। कहीं मन को घेर के बैठी उदासी की झलक है तो कभी नादान मन के भोलेपन , छोटी छोटी बातों में बड़ी खुशियां या बड़े बड़े पल जी लेने के अरमान।
प्यार , स्नेह , मित्रता , दया भाव , करुणा , आनंद , क्षोभ समझने के विभिन्न प्रयासों का भी ज़िक्र है । पुस्तक आम पाठक को कितना बांध के रख सकेगी कह सकना मुश्किल है किंतु एक विशिष्ट वर्ग जो दर्शन ज्ञान, ध्यान एवं जीवन के प्रति एक गहरी सोच एवं स्पष्ट विचारधारा रखता है उस वर्ग के लिए अवश्य ही यह पुस्तक काफी मूल्यवान है ।
पुस्तक को एक बार में पूरा समझ लिया कहना शायद लेखिका के प्रयासों का अनादर होगा ।प्रत्येक पत्र को बारीकी से पूर्ण मनोयोग के साथ ध्यान केंद्रित कर पढ़ना एवं उस पर उत्त्पन्न होते विचारों को कसौटी पर कसना निश्चित ही एक आध्यात्मिक आनंद देने वाली प्रक्रिया होगी । शांत किन्तु गंभीर रचना है . मेरी दृष्टि में यह संग्रहणीय एवं निश्चय ही एक से अधिक बार पढ़ने योग्य कृति है । शेष , पाठक स्वयं पढ़ें एवं निर्णय करें किन्तु पढ़ें ज़रूर ,
सादर,
अतुल्य
91 31 94 84 50
उज्जैन म. प्र.
दिनांक : 22 .03.2023
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