ग़ज़ल
अपनी ही जान की अमाँ से गुरेज़ शोख़ कलियों को बाग़बाँ से गुरेज़ ख़ूँ की नदियाँ बहा दीं पाने को...
अपनी ही जान की अमाँ से गुरेज़ शोख़ कलियों को बाग़बाँ से गुरेज़ ख़ूँ की नदियाँ बहा दीं पाने को...
अध:पतन करना पड़े तो नदी की तरह करना लोग नजीर बना देंगे कहेंगे 'प्रेम में थी नदी...' किसी की तड़प...
बाल कविता लेखन के क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान बना चुके कवि शंभूलाल शर्मा वसंत अब नहीं रहे । 11...
कंधे पर बंदूक उठती स्त्री,एक दूसरे के साथ कदम से कदम मिलती चलती है,अब वो खड़ी होती हैं सीमाओ पर...
संगिनी के प्रति ----------------- (डाॅ.बलदेव) जिनको आकार दिया है तुमने वे नदी बने, पहाड़ बने नदी सदा-नीरा पहाड़ सदावर्त हरा-भरा...
सुरता// 27 मई जयंती साहित्यकार मनके धारनखंभा रिहिन डॉ. बलदेव साव डॉ. बलदेव के चिन्हारी हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य जगत...
- परिचय दास ( प्रिय पत्नी वंदना श्रीवास्तव के लिए , जिन्होंने विरल , साहसपूर्ण एवं अनथक प्रयत्न किए मेरे...
मृत्यु के पास आने के सौ दरवाज़े थे हमारे पास उससे बच सकने के लिए एक भी नहीं इस बार...
भोर की देह कुछ सांवली हो गई रात पर रात का रंग चढ़ता नहीं तुम गए, बुझ गए दीप आकाश...
-------------------- रामनाथ साहू - मुझे इस साल कथा का आयोजन कराना है। मैंने यह संकल्प लिया है । श्यामलाल, तेरा...