ख़त्म फूलों की निशानी…
ख़त्म फूलों की निशानी हो रही है ख़ूब अच्छी बाग़बानी हो रही है! क्यों नहीं मातम हो बकरे के घरों...
ख़त्म फूलों की निशानी हो रही है ख़ूब अच्छी बाग़बानी हो रही है! क्यों नहीं मातम हो बकरे के घरों...
न जाने कितने ही लोगों को इस बरस भी खाने पर बुलाना रह गया और न जाने कितने ही लोग...
मेघ ! तुम इतना बरसते हो भिगो देते हो धरती के अंग अंग को अपने जल से सराबोर कर देते...
कविता - एक ------- चेहरे नहीं धड़कनें तैरती हैं आँखों में प्यार में ****** कविता - दो ------ रहो कहीं...
फ्रेंच कविताओं की अनुवाद शृंखला में योजना रावत ने कवि जेम्स साक्रे की कविताओं का अनुवाद किया है। कवि परिचय...
डाकुओं ने उसे कुछ दिन नहीं वर्षों तक अपने साथ रखा फिर भी डाकू न बना सके विष न भर...
बस, तुम ही तो हो जो उत्ताल लहरों- सी उछलती समंदर की श्वेत बालू पर मेरे बदन से लिपट जाती...
क्या खोना है, क्या पाना है, जो मिलना वो गुम जाना है .. सांसें होतीं खर्च सपन पर, दौड़ा-भागी है...
उसने मुझे समेटा और कहा, कोई मेरे बारे में कुछ भी कहे, तुम मानना वही, जो तुम्हारा मन स्वीकारे मैं...