अपने ही दर्द कम थे क्या …
अपने ही दर्द कम थे क्या जो पराये भी बाँट लिए? सबसे बेरहम दर्द खुद के लिए छाँट लिए! बनकर...
अपने ही दर्द कम थे क्या जो पराये भी बाँट लिए? सबसे बेरहम दर्द खुद के लिए छाँट लिए! बनकर...
रस की धार अनंत बहती थी अंजुरी भर भर पीया हैं हमने प्रेम प्रकाश के छाँव तले जीवन मधुर जीया...
तुम्हारे विरह में झरती हुई इन नम आंखों की बूंदे तुम्हारे गुरूर से हमेशा बड़ी होंगी ...! तुम्हे बहुत गुरूर...
तुमने नदी को बोतल में पैक किया पहाड़ को खुदाई के औजारों में हवा को सिलिंडर में आकाश को बालकनी...
दिन की तासीर सर्द है कल शाम से सूरज को... भिगोया है बादलों ने और दूर शायद .. रुई के...
रूठे को मैं कैसे मनाऊं, होती जिनसे बात नहीं, यादों में मैं उनके तड़पू उनको मेरा ख्याल नहीं।। कोई जाकर...
अपनी मूर्खता पर नही बल्कि भारतीय वैज्ञानिकों के ज्ञान पर ।। अपनी तानाशाही पर नही बल्कि राष्ट्र के लोकतांत्रिक मूल्यों...
विधा - छंद मुक्त परिचय - निशा खैरवा पुत्री मनोज खैरवा छात्रा रामकुमारी कॉलेज मु.पो. बिदासर,लक्ष्मणगढ़, सीकर राज. भोर भिनसार...
ढलती शाम और डूबता सूरज.. रात्रि के दरवाजे पर आखिरी दस्तक दे..रहे हैं। सूर्य का ताप.. जैसे.. अंँधेरी रात ने...