वक्त की उलझनें
विधा -विचार कविता परिचय - ज्ञानीचोर मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज. पिन - 332027 मो. 9001321438 वक्त की उलझनें करती है...
विधा -विचार कविता परिचय - ज्ञानीचोर मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज. पिन - 332027 मो. 9001321438 वक्त की उलझनें करती है...
1 मां की बिंदी लगी है घर के दरवाजे पर और पिता की कलम पड़ी है मेज पर मां सर...
मेरे गाँव की पगडंडी, हर पल ये भान कराती है, कितना कुछ पीछे छूट गया,सपनों में ये कह जाती है...
सर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर.. पहाड़ियों पर बसा, बुद्धिजीवियों का नगर! नीचे तराई में छोटा सा गांव ग्वालमंडी! ताज्जुब होता...
विधा - कविता नींद में करवटें बदली खूब स्वप्न में उत्तेजना ये कैसी...! चित्र-विचित्र, अजीब उलझन रोम-रोम में अजीब अकड़न।...
किसी भी भाषा की किसी किताब को एक ही स्वाद से खाते हैं दीमक,चूहे और तिलचट्टे। नष्ट होते अक्षर, शब्द,...
उम्मीद और भरोसा कच्ची मिट्टी के मेरे मन को चाक पर चढ़ा लेना। हाथों के स्पर्श से , आकृति जैसी...
"हमारे पूर्वज जंगलों में रहा करते थे; और वही अच्छा था।" एक लम्बी साँस लेते हुए माँ ने कहा। "वो...
सभी को छोड़ के, खुद पर भरोसा कर लिया मैंने. वो मैं, जो मुझ में मरने को था, ज़िंदा कर...