“हिन्दी जिस ठाँव उस ठाँव में रहूँगा!”
संवाद के क्षण मुझे भान होता है कि मैं ज़िंदा हूँ... मुझे ज़िंदा होने का अहसास दिलाती है भाषा! मेरी...
संवाद के क्षण मुझे भान होता है कि मैं ज़िंदा हूँ... मुझे ज़िंदा होने का अहसास दिलाती है भाषा! मेरी...
लेखक :- रुपाली नागर 'संझा' विधा :- यात्रा संस्मरण अपनी पहली साँस से लेकर अंतिम साँस तक यूँ तो हर...
तुम इश्क़ करना और ज़रूर करना इस तरह से करना कि एक आंच तुम्हे छूते हुए गुज़रे। तुम इश्क़ में...
मैं हिंदी भारत की बेटी,राजभाषा कहलाती हूँ। भाषाओं में ये ओहदा पाकर, मन ही मन इठलाती हूँ। जन-जन की हूँ...
तुम्हारे साथ, अहा .! सुखद अलौकिक अनुभूति, तुम सपनों में नित आती -जाती, घुंघराले- घुंघराले अक्षरों में, कोरे कागज पर...
झुरमुटों के बीच पड़ा हुआ बालपंछी, टकटकी लगाए निहारता घोंसले को । ढूँढती हुई निगाहें उसकी इधर-उधर, माँ किधर तोड़ा...
हम सबने,एक चादर ओढ़ रखी है, चादर के हटते ही यदाकदा, झीनी-झीनी सी तस्वीर सामने आती है । बड़ी शिद्दत...
तटस्थता का इतिहास, उसके गद्दार होने की गवाही में साबित हो चुका है। इस पर हमारे समय के कई महत्वपूर्ण...