बद्री प्रसाद वर्मा अनजान की गजलें
खुदगजॅ जमाने में खुदगजॅ जमाने में दीवाने हजारों हैं मरने के लिए देखो परवाने हजारों हैं। करते हैं खुद खुशी...
खुदगजॅ जमाने में खुदगजॅ जमाने में दीवाने हजारों हैं मरने के लिए देखो परवाने हजारों हैं। करते हैं खुद खुशी...
ट्यूबलाइट जलनी चाहिए! खुलेंगी करतूतें काली अंधेरगर्दी के काले चेहरें वर्दी में उलझी मोहरें अपराधों की काली छाया उजागर उत्कोच...
1 ऐसा हूँ मैं शास्त्र अनोखा , रुपए पैसे की नीति बनाता । कौटिल्य की हूँ रचना प्यारी , बोलो...
राजधानी में सवाल उठ रहा है कि किसानों ने धोती क्यों नहीं पहन रखी है मैली-कुचैली, क्यों नहीं है उनका...
वह अंडमान की यात्रा थी। अंडमान की खूबसूरती के बारे में तो जितना भी कहा जाए कम है। उस पर...
सच बताना हे कवि! कोई सम्बन्ध तो नहीं तेरा किसी राजनीतिक पार्टी/किसी धर्म/किसी जाति किसी पशु विशेष से या ओढ़े...
छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य के नांव म आज जतका भी किताब, शोध ग्रंथ या आलेख उपलब्ध हे, सबो म कातिक महीना...
रंग भरने का हुनर तुममें कहाँ है। तुम तो शोषित रक्त कर कामी बने हो।। करुणा की लयबद्धता को भ्रंश...
01/05/2008 ये तूफान यू ही नहीं उठे होगे कहीं पापी पेट की अगन से क्षुब्ध हो कर कोई बिलखता चुरा...
बंदरिया आंटी साड़ी बदलती नित - नित नई- नई सारे दिन फिर घूमा करती बाजार- हाट, डेहरी- डेहरी पान चबाती,...